जवानी की प्यास नौकर से बुझवाई-1

(Jawani Ki Pyas Naukar Se Bujhwayi-1)

yachting4u.ru पढ़ने वाले हर पाठक को मेरा प्रणाम. मेरा नाम पम्मी है और मैं पंजाब की रहने वाली हूं. मैं 25 साल की एक शादीशुदा महिला हूं.

आपको मेरे जिस्म की नुमाइश करा देती हूँ. मेरे पहाड़ जैसे गोल गोल मम्मे हैं. उफ्फ.. जिनमें कूट कूट कर यौवन का रस भरा पड़ा है. सपाट पेट है, पतली सी कमर है और बाहर को उभरी हुई, उठी सी गांड है. फिटिंग पंजाबी सूट में मेरा बलखाता लचकीला लहराता हुया बदन बिजलियां गिराता है. जब मैं गांड मटका कर चलती हूं, तो मुझे देख कर मर्दों के मुख से आहें निकल जाती हैं.

मैं जब 12वीं क्लास में थी, तब मैंने अपने यौवन के पौधे का पहला फल अपने यार मन्नू को चखाया था. जितनी आग मेरी जवानी में मेरी फुद्दी में थी, उतनी ही आग मेरे आशिक मन्नू में थी. जब हम चुदाई के लिए मिलते थे, तो कमरे में तूफान आ जाता था. मेरी कोमल, नर्म जवानी को, कसरती जिस्म का मालिक मन्नू दबा कर मसलता था.

जब तक मन्नू मेरी ज़िंदगी में रहा, मैंने दूसरे लड़के पर नज़र तक नहीं रखी थी. पर मन्नू मुझसे बड़ा था और बारहवीं कर चुका था. अपना कैरियर बनाने के लिए वो ऑस्ट्रेलिया चला गया, पर जो आग मेरी जवानी में मन्नू लगा गया था, वो मुझे परेशान करने लगी.
बस इसी आग में फिसलते फिसलते मैं कुछ ज्यादा ही फिसल गई. मेरी फुद्दी की आग मुझे बेबस कर देती थी.

फिर एक दिन मेरी माँ को मेरी गतिविधियों पर शक होने लगा और घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढने लगे. माँ मुझे अपनी निगरानी में रखती, तो मैं बाथरूम में खुद ही उंगली से फुद्दी को रगड़ रगड़ कर, अपने मम्मे दबा दबा कर खुद को शांत कर लेती.

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आखिरकार मेरी बुआ मेरे लिए एक बड़े अमीर घर का रिश्ता लेकर आईं. लड़का दिखने में ठीक था. मुझे तो बस यही था कि जिससे मेरी शादी हो वो इतना तगड़ा हो, जो मेरी फुद्दी की आग को रोज़ रात को ठंडी कर सके.

मैं भी शादी के लिये उतावली थी. आखिर मेरी शादी उससे तय हो गई. मेरी शादी में सभी नशे में धुत होकर नाच रहे थे.

दुल्हन बन कर मैं प्रीतम के घर आ गई. प्रीतम दिखने में तो बड़ा तगड़ा लगता था. उसका घर भी बहुत बड़ा था. मैं खुश थी. ससुराल में आने के बाद मेरी ननद मुझे चेंज करवाने कमरे में ले गई. चेंज करके जब मैं हॉल में नीचे आई, तो वहां मौजूद कई मर्दों की निगाह मुझ पर थी. कुछ शगुन वगैरह हुए और इसके बाद रात को मेरी ननद ने मुझे कमरे में छोड़ दिया.

तक़रीबन आधे घंटे बाद प्रीतम कमरे में आए. उन्होंने भी काफी पी रखी थी. मैं अपनी फुद्दी चुदवाने के लिए बेताब थी.
प्रीतम ने मुझसे कहा- तुम्हारा स्वागत है अपने घर में.
उसने मेरे पास बैठ कर मुझे अपनी बांहों में ले लिया. इससे मेरी फुद्दी में खुजली होने लगी. नशे में धुत प्रीतम ने एक एक करके मेरे कपड़े उतारे और मेरी जवानी देख प्रीतम भी आपा खो बैठा. वो मुझे बेतहाशा चूमने लगा. उससे भी रुका नहीं गया और मेरी टांगें उठा उसने लंड मेरी फुद्दी पर रख दिया.

मैं चाहती थी कि पहले वो मुझसे लंड चुसवाये, मेरी फुद्दी से खेले. लेकिन ये सब नहीं हुआ.

उसने लंड डालने की कोशिश की, तो मैंने फुद्दी को सिकोड़ लिया. मुझे भी उसको ये अहसास करवाना जरूरी था कि मैं सील पैक माल हूँ. थोड़ा प्रयास करवा मैंने लंड लिया और दर्द होने की खूब एक्टिंग की.

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प्रीतम का लंड ज्यादा बड़ा नहीं था. थोड़े देर झटके लगा प्रीतम मेरी आग जैसी जवानी के सामने घुटने टेक हांफने लगा.
उफ्फ.. मेरे तो सारे अरमान चूर चूर हो गए. पर सब्र का घूँट भरके में चुप बनी रही. फिर हम दोनों वैसे ही सो गए.
दो दिनों बाद सभी रिश्तेदार अपने अपने घर लौट गए.

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अब प्रीतम का रोज़ का यही हाल हो गया, वो मेरी चूत ठीक से चोद ही नहीं पाता था. मेरी चुदास बढ़ने लगी. घर में हर सुख सुविधा थी. नौकर चाकर ड्राइवर सब थे. पर मुझे ज़रूरत थी किसी मूसल लंड की, जो मेरी फुद्दी की प्यास को अच्छे से बुझा सके.

एक दिन मैं बाथरूम से नहाकर निकली. रोज़ मैं ब्रा पैंटी के ऊपर से टॉवल लपेट लेती और कपड़े बाहर निकल कर पहनती थी. उस दिन भी ऐसे ही निकली.

पति आज सुबह सुबह मेरे सोते सोते ही किसी काम से निकल गए थे. हमारे घर में नौकर भीमसेन रसोई में काम करता था. पहले पति अकेले होते थे, तो वो सीधा कमरे में चाय वगैरह देने आ जाता था.

अपनी आदत के चलते उसने चाय बनाई औऱ कमरे में देने आ गया. मैं टॉवल उतार कर अभी सलवार डाले मैं नाड़ा बांध ही रही थी कि उसने दरवाज़ा खोल दिया. उसको देख पहले मैं चौंक सी गई. वो भी घबरा सा गया.

गलती मेरी भी थी, मैंने दरवाज़ा लॉक नहीं किया था; और उसकी भी थी क्योंकि उसने नॉक नहीं किया था.

मैंने जल्दी से बांहों से अपने आंचल को छुपा लिया. तब तक उसने मेरे आधे नंगे जिस्म को देख लिया और सॉरी सॉरी कहते हुए भाग गया.

मैंने कपड़े पहने और आराम से रसोई में आ गई और उससे बोली- कहां है चाय?
मुझे गुस्से में ना देख कर उसकी भी सांस में सांस आई. मैंने गौर से उसकी तरफ देखा. उसका चौड़ा सीना और मजबूत शरीर था.
मैंने प्यार से कहा- भीम, ख्याल रखा करो, अब अकेले तुम्हारे मालिक ही नहीं रहते उस कमरे में.
वो बोला- जी जी मैडम.

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उसको गौर से देखने के बाद उसके लिए मेरी फीलिंग ही बदल गई. अब घर में एक वही मर्द था, जिससे मैं अपनी फुद्दी की प्यास बुझा सकती थी.

वो था भी घर की चारदीवारी के अन्दर. मां जी और ससुर जी रोज़ सत्संग चले जाते औऱ प्रीतम अपने काम पर चला जाता. मैं भीम पर आस भरे निगाहों से देखने लगी. जब वो मुझे कुछ देने आता तो मैं उसको क़ातिल निगाहों से देखने लगी.

इस बात का उसको भी अंदाज़ा सा हो चुका, पर वो डरता था. मैं उसपे डोरे डालने लगी थी. प्रीतम के ढीले लंड से दुखी मैं, भीम को अपनी जवानी के जाल में फांसने का तरीका ढूंढने लगी.

आखिर पहला कदम उठाते हुए एक दिन जब वो सब्ज़ी काट रहा था, तब चुन्नी उतार सोफे पर रख इधर उधर देख रसोई में उसके पास आ गई. उसकी पीठ मेरी तरफ थी. फुद्दी की चुदास के चलते मैंने उसके कंधे पर हाथ रख दिया और बोली- तुम अकेले लगे रहते हो, कोई काम मुझे भी दे दिया करो; मैं बोर होती रहती हूं.

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