ट्रैन में चोदा बहन की बुर उसकी मर्ज़ी से-15

Train Mein Choda Bahan Ki Bur Uski Marji Se-15

मेरा लन्ड अब शायद वियाग्रा के असर में था, टन्टनाया हुआ… और तैयार। मेरे लन्ड को हल्के से एक चपत लगाई गुड्डी और मैं आह्ह… कर बैठा तो वो बोली, “मेरी गाँड़ फ़ाड़ोगे और मेरा एक थप्पड़ नहीं खाओगे… ऐसा कैसे होगा।” इसके बाद को थोड़ा और जोर से जल्दी-जल्दी ५ थप्पड़ गुड्डी ने मेरे फ़नफ़नाए हुए लन्ड को लगा दिए और मैं अब दर्द महसूस करके चिहुँक कर पीछे हटा। गुड्डी मुझे परेशानी में देख कर खिल्खिलाई और बोली, “आ जाओ अब… फ़ाड़ो मेरी गांड़”। मुझे गुस्सा आया और फ़िर अपने गुस्से पर काबू करते हुए मैने गुड्डी को बिस्तर पर खींचा, “साली… मादरचोद… रन्डी…”। गुड्डी अब स्वीटी से बोली, “जरा वो कन्डोंम ला दो”, फ़िर मुझसे बोली, “कन्डोम पहन कर गाँड़ मारना डीयर”। मैंने जब कंडोम अपनी बहन के हाथ से लिया तो वो बोली, “लाईए मैं पहना देती हूँ”, और फ़िर वो बडे प्यार से कंडोम को पैकेट से निकाल कर मेरे लन्ड पर पहनाने लगी। उसने कंडोम को पहले ही खोल दिया था, अनुभव हीन थी मेरी बहन।

मैंने उसको बताया कि सही तरीके से लन्ड के ऊपर कंडोम कैसे चढ़ाते हैं और फ़िर गुड्डी को पास में खींचा। गुड्डी क्रीम को अपने गाँड़ की गुलाबी छेद पे मल रही थी और फ़िर धीरे-धीरे अपनी ऊँगली से अपने गाँड़ की छेद को गुदगुदा भी रही थी। मैं भी अब उसकी देखा-देखी उसकी गाँड़ को अपने ऊँगली से खोदने लगा। वो खिब सहयोग कर रही थी। जल्दी हीं उसका गाँड़ का छेद अब खुल गया और भीतर का हल्का गुलाबी हिस्सा झलकने लगा था, तब वो बिस्तर पकड़ कर निहुर कर सही पोज में आ गई और फ़िर मुझे बोली, “आ जाओ और धी-धीरे घुसाना… एक बार में नहीं होगा तो धीरे-धीरे दो-चार बार कोशिश करना, चला जाएगा भीतर…”। मैं अब पहली बार गाँड़ मारने के लिए तैयार हुआ और फ़िर उसकी गाँड़ की छेद पर लगा दिया और फ़िर भीतर दबाने लगा।

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तीन बार के बाद मेरा सुपाड़ा भीतर घुस गया। गुड्डी लगातार पूछ रही थी कि कितना गया भीतर। उसे दर्द हो रहा था पर वो सब बर्दास्त कर रही थी। जब मैंने सुपाड़ा भीतर जाने की बात बताई तो बोली, ठीक है अब बिना बाहर खींचे लगातार भीतर दबाओ गाँड़ में…मुझे जोर से पकड़ना और छोड़ना मत अब। बाकी तीनों लड़कियाँ वहीं पास में बैठ कर सब देख रही थी पर सारा ध्यान अभी गुड्डी की गाँड़ पर था। मैंने गुड्डी मे बताए अनुसार ही ताकत लगा कर अपना लन्ड भीतर घुसाने लगा और गुड्डी दर्द से बिलबिला गई थी। अपनी कमर हिलाई जैसे वो आजाद होना चाहती हो।

पर मैंने तो उसको जोर से पकड़ लिया था, जैसा उसने कहा था और बिना गुड्डी की परवाह किए पूरी ताकत से अपना लन्ड उसकी टाईट गाँड़ में पेल दिया। जब आधा से ज्यादा भीतर चला गया तब गुड्डी बोली, “अब रुक जाओ… बाप रे… बहुत फ़ैल गया है दर्द हो रहा है अब… प्लीज अब और नहीं मेरी गाँड़ फ़ट जाएगी।” मैंने उसको बताया कि करीब ६” भीतर चला गया है और अब करीब २” हीं बाहर है तो वो अपना हाथ पीछे करके मेरे लन्ड को छु कर देखी कि कितना भीतर गया है और फ़िर बोली, “अब ऐसे ही आगे-पीछे करके मेरी गाँड़ मारो… बाकी अपने भीतर चला जाएगा”। मैं अब जैसा उसने कहा था, गुड्डी की गाँड़ मारने लगा… और फ़िर देखते देखते मुझे लगा कि उसका गाँड़ थोड़ा खुल गया हो और फ़िर धीरे-धीरे उसकी गाँड़ मेरा सारा लन्ड खा गई। करीब ५ मिनट गाँड़ मराने के बाद वो मुझे लन्ड बाहर निकालने को बोली, और फ़िर आराम से गुड्डी उठी और मुझे बिठा कर मेरी गोद में बैठ गई… गाँड़ में इस बार उसने खुद भी मेरा लन्ड घुसा लिया था। मुसकी गाँड़ अब खुल गई थी। मेरे सीने से उसकी पीठ लगी हुई थी और सामने से अपनी बूर खोल कर वो मेरे घुटनो पर अपने पैर टिकाए बैठ कर बोली, “कोई आ कर मेरी बूर में ऊँगली करो न हरामजादियों… सब सामने बैठ कर देख रही हो।”

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ताशी और आशी दोनों बहने अब गुड्डी की बदन को सहलाने लगे थी और तभी वो उन सब को हटा कर ऊपर से मुझे चोदने लगी, बल्कि ऐसे कहिए कि मेरे लन्ड से अपना गाँड़ मराने लगी। यह सब सोच अब मुझे दिमाग से गरम करने लगा और जल्द हीं मेरा पानी छूटा…. मेरे कन्डोम ने उस पानी को कैन कर लिया और गुड्डी भी सब समझ कर उठी और मेरा कन्डोम एक झटके से खींच कर एक तरफ़ फ़ेंक दिया और फ़िर बिस्तर पर फ़ैल कर अपने हाथ से अपना गाँड़ खोल कर बोली, “आओ हरामी, एक बार और मार लो मेरी गाँड़ बिना कन्डोम के…”। मैं भी तुरन्त उसके ऊपर चढ़ कर उसकी गाँड़ में लन्ड घुसा दिया। अब उसका गाँड़ पूरी तरह से खुल गया था…. खुब मन से इस बार मैंने उसकी गाँड़ मारी करीब १० मिनट तक और फ़िर उसकी गाँड़ में हीं झड़ गया। अब तक मैं बहुत थक गया था, बल्कि हम दोनों तक गये थे सो हम एक तरफ़ हो निढ़ाल पड़े रहे और लम्बी-लम्बी साँसे लेते हुए अपनी थकान मिटाने का प्रयास करने लगे।

करीब ५ मिनट बाद हम दोनों उठे, गुड्डी अब नहाने के लिए बाथरूम में चली गयी और हम सब लोग अपने कपड़े वगैरह ठीक करने लगे। ताशी और आशी दोनों की साँस भी अब ठीक हो गई थी। घड़ी में अब करीब १ बज गया था और मेरे ट्रेन के लिए अब निकलने का समय भी नजदीक हो गया था। मैंने ताशी, आशी से उनका पता और नम्बर लिया और फ़िर उन दोनों को उनके होठों पर चुम्मी ले कर विदा किया। उन दोनों के मम्मी-पापा आ गए थे। गुड्डी जब नहा धो कर बाहर आई तो मैं तैयार होने चला गया। फ़िर हम सब एक साथ ताशी के कमरे में गए और फ़िर उस पूरे परिवार से विदा लिया। ताशी के मम्मी-पापा ने मुझे कहा भी कि कभी अगर आना हुआ तो उनके घर भी मैं जरुर आउँ… और मैंने उन दोनों बहनों की तरफ़ देखते हुए कहा, “जरुर…” और फ़िर उन्हें नमस्ते कह कर बाहर आ गया।

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फ़िर मैं स्वीटी और गुड्डी के साथ होटल छोड़ कर बाहर आ गया और फ़िर साथ हीं स्टेशन के लिए चल दिए। दोनों लड़कियाँ मुझे ट्रेन में बिठा कर वापस अपने कौलेज लौट गईं। मैंने उन दोनों को गले से लगा कर विदा किया, और तब स्वीटी मेरे कान में बोली, “अब आपको पता चलेगा…. बहुत मस्ती किए हैं यहाँ…. वैसे वहाँ भी विभा दी तो हैं हीं, पर वो मेरे जैसे नहीं है… बहुर शर्मिली है, कुछ गड़बड़ मत कर लीजिएगा…”। मैंने हल्के से उसके गाल पर थपकी दी और फ़िर उन दोनों को विदा कर दिया।
ट्रेन समय से खुल गई, और अब मैं अपनी सीट पर लेटा पिचले कुछ दिनों के घटनाओं के बारे में सोचने लगा। सब कुछ एक सपना जैसा लग रहा था।

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